(2) बुलबुल (Red Vented Bulbul, Pycnonotus cafer)
10/1/2025
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पिछले लेख: रेस कोर्स रोड, इंदौर के पक्षी।
(1) पतरिंगा (Green Bee Eater 💚)
बुलबुल, Red Vented Bulbul (Pycnonotus cafer)
'बुलबुल की फोटो'!? हमें बुलबुल की फोटो खींचते देख, बर्ड सर्वे/बर्ड वाचिंग के दौरान साथी बर्ड वाचर अक्सर ये प्रश्न पूछा करते हैं। दरअसल बर्ड वाचर्स की दुनिया में बुलबुल को बहुत बुरा और बिल्कुल साधारण सी चिड़िया माना जाता है। इसीलिए हमसे पूछा जाता है: विदेशी, विचित्र, सुंदर, प्रवासी और असाधारण चिड़ियाओं को छोड़कर बुलबुल जैसी सर्वत्र उपलब्ध साधारण चिड़िया की फोटो क्यों!?
ऐसे प्रश्न सुनकर हमें बिल्कुल वैसे ही लगता है जैसे सलीम को तब लगा होगा जब उनकी माता महारानी जोधाबाई ने 'मुगले आजम' में उनसे ये पूछा था: महाबली से मुकाबला एक लौंडी के लिए!?
सलीम अपनी लौंडी यानी अनारकली के लिए लड़ा था। हम हमारी 'देसी बुलबुल' के लिए लड़ेंगे!
मी लॉर्ड, आप ये अच्छे से जान लें कि ये बुलबुल कोई साधारण चिड़िया नहीं है। अगर आप ये ब्लॉग पोस्ट आखिरी तक पढ़ते हैं तो आप हमसे जरूर सहमत होंगे। सबसे पहले आप बुलबुलों का ये छोटा सा एल्बम देख लीजिए।
बुलबुल एक छोटा सा 20 सेमी लंबा पक्षी है जो शहरों में भी बहुतायत से पाया जाता है। इसका सिर पूर्णतः काला होता है। सिर पर एक छोटी सी कलगी या शिखा ( Crest) होती है। इस कलगी के कारण बुलबुल का चेहरा कभी चतुर्भुजी और कभी पंचमुखी दिखाई देता है। चोंच थोड़ी सी मुड़ी हुई होती है।
बाकी शरीर गहरे भूरे रंग का होता है जिसमें शल्कदार, परतदार आकार ( Scaly Patterns) होते हैं। गर्दन के पीछे का पैटर्न और पीठ का पैटर्न अलग-अलग परतदार होता है। इनकी एक लंबी काली पूंछ होती है, जिसका सिरा सफेद होता है। इनका पेट या पूंछ के नीचे का हिस्सा लाल होता है। इसीलिए इसे Red Vented Bulbul या गुलदुम बुलबुल या लाल पेट बुलबुल कहा जाता है। शायरों और साहित्यकारों द्वारा प्रचलित किए गए फारसी/अरबी नाम 'बोलबोल' और फिर 'बुलबुल' से पहले कभी इन्हें कलसिरी (काले सिर वाली) कहा जाता था। और संस्कृत में इन्हें कहते हैं: कृष्णचूड गोवत्सक और कलविकंक।
बुलबुल एक शोर मचाने वाली मिलनसार चिड़िया है। ये अपने से बड़ी चिड़ियाओं जैसे कबूतर और कोयल को भी आक्रामक होकर पीछे खदेड़ देती हैं। ये आराम से तार या पेड़ों पर बैठकर अपना गाती रहती हैं। बुलबुल बेबी को गाना पसंद है। कोई सुने या न सुने, कोई पसंद करे या न करे, उसे कुछ फरक नहीं पड़ता। इंसानी फितरत थोड़ी अलग होती है। वो गाना गाकर सुनाना चाहता है, अन्य किसी का गाया सुनना नहीं चाहता। सोशल मीडिया पर उसके गाने पर Likes न मिले तो झट से डिप्रेशन में घुस जाता है! देखो तो!
भारत में बुलबुल की आठ उप प्रजातियां पाई जाती हैं और सभी सुरीला गाती हैं। सभी की अलग-अलग आवाजें और दास्तानें हैं। इसीलिए बुलबुलों को 'हज़ार दास्तान' और 'हज़ार आवाज़' जैसे नाम भी दिये गये हैं। इस ब्लॉग में सिर्फ हम इंदौर वाली बुलबुल यानी रेड वेंटेड बुलबुल की ही बात करेंगे। इस लाल पेट वाली बुलबुल की मधुर आवाज़ सुनने के लिए यहां क्लिक करें।
विदेशी वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे अधिक 100 आक्रामक विदेशी प्रजातियों ( Invasive Species) की एक सूची बनाई है जिसमें पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, फंगस, वायरस, कीड़े, मकोड़े आदि शामिल हैं। उनके अनुसार ये 100 प्रजातियां मानव और धरती की अन्य प्रजातियों के लिए सबसे अधिक हानिकारक हैं।
आपको एक मजे की बात बताऊं!? इस वैज्ञानिक पद्धति से बनाई गई सूची में मानव जाति ( Homo sapiens) का नाम ही नहीं है! ही ही ही! ही ही ही!!
सौ प्रजातियों की इस सूची में सिर्फ तीन ही चिड़ियाएं हैं। और तीनों ही हमारे देश से हैं! पहली हमारी अपनी कलसिरी या लाल पेट वाली बुलबुल। दूसरी कॉमन मैना। तीसरी एशियन स्टर्लिंग। ये तीनों प्रजातियां भारत से निकलकर विदेशों में भी पहुंची। विदेशी सय्याद ही यहां से बुलबुलों को पिंजरे में कैद करके लेकर गए थे। सोचे थे गाना सुनेंगे, पड़ोस में झांकी जमाएंगे।
झांकीबाजी के दिन लद गए, भीया! अब उनके लिए ये आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ हैं क्योंकि उनके अनुसार ये उनके अन्न के उत्पादन, भंडारण और जैविक अखंडता ( Bio Diversity) के लिए एक बड़ा खतरा हैं। मानव दृष्टिकोण से ये बात सही भी हो सकती है। लेकिन धरती मां के दृष्टिकोण से कौन सही है? सही समझे आप!
मनुष्य इस धरती पर लगभग दो लाख साल पहले आया। लेकिन बुलबुल कम से कम 28 लाख साल पहले ही आ चुकीं है। इंसान कितनी भी हिंसा या तोड़फोड़ कर दे, बैज़ा-ए-बुलबुल (बुलबुल के अंडे) को कभी हमेशा के लिए फोड़ नहीं सकता!
इस बात की प्रबल संभावना है कि मानव प्रजाति का बुलबुला पहले फूटेगा और मानव प्रजाति के लुप्त होने के बाद लाखों साल बाद भी बुलबुलें गाती रहेंगी। धरती मां ने एक करवट ली और हम साफ हो जाएंगे। सूचियां बनी रह जाएंगी। सारा गुरूर यहीं पावन धरा पर बस धरा का धरा रह जाएगा।
चलो अब हिंदी साहित्य में बुलबुल को खोजते हैं। कवि हरिवंश राय बच्चन ने बुलबुल पर एक अतिसुंदर कविता लिख कर अपना अतुलनीय योगदान दिया है। इस कविता की अंतिम पंक्तियां नीचे लिखी हैं:
करे कोई निंदा दिन-रात, सुयश का पीटे कोई ढोल।
किए कानों को अपने बंद, रही बुलबुल डालों पर बोल।
किए कानों को अपने बंद, रही बुलबुल डालों पर बोल।
कवि हरिवंश राय बच्चन ने इसी कविता के प्रारंभ में ये भी लिखा है:
अरे मिट्टी के पुतलों, आज सुनो अपने कानो को खोल।
सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल !
बुलबुल से प्रेरणा लेकर हम भी वो ही करेंगे जो हमारी बुलबुल करती है: खाएंगे, पिएंगे, बोलेंगे, गाएंगे। और लिखेंगे भी। बोल!
उर्दू शायरी में भी बुलबुल को काफी तवज्जो दी गई है। छोटी सी बुलबुल पर एक बड़ा सा शेर छोड़ देते हैं। बुलबुल झेल लेगी, उत्तरजीवी ( Survivor) है!
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला।
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में।
- बहादुर शाह जफर
बीसियों और शेर लिखे गए है बुलबुल पर, लेकिन अकबर इलाहाबादी (1846-1921) के लिखे इस शेर पर खास गौर करिए:
गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आए बहुत इत्र-फ़रोश।
तालिब-ए-ज़मज़मा-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला।
थोड़ा पहले आकर चले गए अकबर इलाहाबादी। अगर आज के युग में आते तो गुल को छोड़कर बुलबुल पर मरने वाला कम से कम एक बुलबुल-ए-शैदा तो मिल ही जाता उन्हें!
वैसे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बुलबुलों के कद्रदानों की कोई कमी नहीं है। बोले तो हिंदी फिल्मों में बुलबुल के बोलों का बोलबाला है। कोयल और पपीहे के बाद सबसे अधिक गाने बुलबुल पर ही बने हैं। अभी तक 26 गाने बुलबुलों पर ढूंढे हैं।
काबिल संगीत प्रेमी भी अगर बुलबुल के प्रेम में जकड़ जाएं तो बुलबुल पर 36 गाने और ढूंढ निकालेंगे। अभी इन्हीं 26 गानों से काम चला लीजिए! बस आपको गानों पर क्लिक करना है और सुनना है ये अद्भुत बुलबुली गीत:
(1) गाना: धीरे धीरे आ रे बादल। फिल्म: किस्मत(1943)।
गायिका: अमीरबाई कर्नाटकी। गीतकार: आर बी द्विवेदी।
संगीतकार: अनिल बिस्वास।
धीरे धीरे आरे बादल, मेरा बुलबुल सो रहा है ...
(बुलबुल शब्द वैसे तो स्त्रीलिंग होता है लेकिन साहित्य /हिंदी गानों में प्रेमियों और प्रेमिकाओं दोनों के लिए उपयोग किया जाता है।)
(2) गाना: धीरे धीरे आ रे बादल। फिल्म: किस्मत(1943)।
गायक: अरुण कुमार। गीतकार: आर बी द्विवेदी।
संगीतकार: अनिल बिस्वास।
(लता मंगेशकर ने भी अमीरबाई कर्नाटकी को श्रद्धांजलि देते हुए इस गीत को बहुत ही सुंदर गया है: धीरे धीरे आ रे बादल।)
(3) गाना: बुलबुल आ तू भी गा। फिल्म: शहंशाह बाबर (1944)। गायिका: खुर्शीद। गीतकार: पं. इंद्र। संगीतकार: खेमचंद प्रकाश।
(4) गाना: बुलबुल की रुत बहार आती है एक बार। फिल्म: परबत पे अपना डेरा (1944)। गायक: खान मस्ताना। गीतकार-दीवान शरर। संगीतकार: वसंत देसाई।
(5) गाना: सुन सुन री बुलबुल दीवानी। फिल्म: जीने दो (1948)। गायिका:गीता दत्त। गीतकार: शेवान रिज़वी।संगीतकार: नाशाद।
(6) गाना: उठो बुलबुलो तोड़ दो तीलियां। फिल्म: खामोश सिपाही (1950)। गायक: मोहम्मद रफी। गायिका : गीतादत्त। गीतकार : डीएन मधोक। संगीतकार: हंसराज बहल।
(7) गाना: आज मोरी बगिया में बोले बुलबुल।फिल्म: भीमसेन(1950)। गायिका: गीता दत्त। गीतकार-बी पी भार्गव। संगीतकार:अविनाश व्यास।
(8) गाना: मोरी अटरिया पे बुलबुल बोले।फिल्म: अभिनेता(1951)। गायिका:मीना कपूर। गीतकार- नज़ीम पानीपति। संगीतकार: अजीज हिंदी।
(ये गीत मोरी अटरिया पे कागा बोले (1950) की नकल है, लेकिन फिर भी सुनने लायक है।)
(9) गाना: गुल मुस्कुरा उठा बुलबुल ये गा उठा। फिल्म: बादशाह (1954)। गायिका: लता। गीतकार: शैलेंद्र।संगीतकार: शंकर जयकिशन।
(10) गाना: बन में बोले बुलबुल और मन में बोले मैना। फिल्म: तीन भाई।(1955) गायिका: सुधा मल्होत्रा। गीतकार: भरत व्यास। संगीतकार: अरुण कुमार मुखर्जी।
(11) गाना: बुलबुल का चहचहाना फूलों का मुस्कुराना। फिल्म: राज दरबार (1955)। गायिका:आशा भोंसले। गीतकार: श्याम हिंदी। संगीतकार: चित्रगुप्त।
(12) गाना: बुलबुल मेरे चमन के। फिल्म: हीर (1956)। गायिका: गीता दत्त। गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी।संगीतकार: अनिल बिस्वास।
गाना: आ खिलते हैं गुल, ओ मेरे बुलबुल। फिल्म: सितारों से आगे(1958)। गायिका: लता मंगेशकर। गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी। संगीतकार: एसडी बर्मन।
(13) गाना: दिल तेरा दीवाना ओ मस्तानी बुलबुल। फिल्म: मिस्टर कार्टून एमए(1958)। गायिका: आशा भोंसले, गीता दत्त।गीतकार: हसरत जयपुरी। संगीतकार: ओपी नैय्यर।
(14) गाना:ओ मेरी बुलबुल ए बगदाद। फिल्म: नया पैसा(1958)। गायक: रफ़ी। गायिका: आशा भोंसले। गीतकार: राजा मेहदी अली खान। संगीतकार: एस मोहिंदर।
(15) गाना: फुलबगिया में बुलबुल बोले। फिल्म: रानी रूपमती (1959)। गायक: रफ़ी। गायिका: लता। गीतकार: भरत व्यास। संगीतकार: एस एन त्रिपाठी।
(16) गाना: कैद में है बुलबुल सैय्याद मुस्कुराए। फिल्म: बेदर्द ज़माना क्या जाने(1959)। गायिका: लता। गीतकार: भरत व्यास। संगीतकार: कल्याणजी वीरजी शाह।
(17) गाना: सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा। फिल्म: भाई बहन (1959)। गायिका: आशा भोसले। गीतकार: अल्लामा इकबाल का लिखा, फिल्म में राजा मेंहदी अली खान द्वारा संशोधित। संगीतकार: एन दत्ता।
ये गीत लगभग राष्ट्रीय गीत के समक्ष माना जाता है इसका मुखड़ा ये है: सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा। हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसिताँ हमारा।
सोचिए जरा! हम सभी देशवासी बुलबुलें हैं इसकी...
(18) गाना: लगता नहीं है दिल मेरा ।फिल्म: लाल किला (1960)। गायक: मोहम्मद रफी। गीतकार: बहादुर शाह जफर। संगीतकार: एस एन त्रिपाठी।
इस ग़ज़ल के निम्नलिखित अंतरे में बुलबुल का जिक्र आता है:
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला।
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में।
इन चारों में किसने सबसे ज्यादा अच्छा गाया है इस गजल को? अगर आप किसी एक का नाम लेते हैं तो ये बाकी तीनों के साथ अन्याय होगा! इसलिए इसे सिर्फ एक बेहतरीन गजल ही समझ कर अगले 'बुलबुली' गाने पर पहुंच जाएं।
(19) गाना: एक था गुल और एक थी बुलबुल। फिल्म: जब जब फूल खिले(1965)। गायक: रफ़ी। गीतकार-आनंद बख्शी। संगीतकार: कल्याणजी आनंदजी।
हिंदी और उर्दू साहित्य में 'गुल और बुलबुल' की जोड़ी को काफी महत्व दिया गया है। गुल और बुलबुल पर ये एक श्रेष्ठ गीत है।
(20) गाना: फुर्र से उड़ जाती थी बुलबुल। फिल्म: शादी के बाद (1972)। गायक: मोहम्मद रफ़ी। गीतकार: आनंद बख्शी।संगीतकार: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल।
(21) गाना: नाच मेरी बुलबुल कि पैसा मिलेगा। फिल्म: रोटी (1974)। गायक: किशोर कुमार। गीतकार: आनंद बख्शी।संगीतकार: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल।
(22) गाना: मेरी बुलबुल यूं न हो गुल। फिल्म: बीवी ओ बीवी (1981)। गायक: किशोर कुमार। गायिका: लता।गीतकार: निदा फाजली। संगीतकार: आर डी बर्मन।
(23) गाना: बुलबुल मेरे बता क्या है मेरी खता।फिल्म: मास्टरजी (1985)।गायक: किशोर कुमार।गायिका: लता। गीतकार: इंदीवर। संगीतकार: बप्पी लाहिरी।
(24) गाना: सैय्याद ने छुपाया...। फिल्म: कैद में है बुलबुल (1992)। गायक: सुरेश वाडकर। गायिका: अलका याग्निक। गीतकार: समीर। संगीतकार: आनंद मिलिंद।
(25) गाना: बुलबुल बोले अंगना मेरे। फिल्म: धरतीपुत्र (1993)।गायिका: अलका याग्निक। गीतकार: समीर। संगीतकार: नदीम श्रवण।
(26) गाना: बुलबुल ने भी। फिल्म: आदमी खिलौना है (1993)।गायक: मोहम्मद अज़ीज़। गायिका: अलका याग्निक। गीतकार: समीर। संगीतकार: नदीम श्रवण।
अध्यक्ष महोदय, अब छोटी सी बुलबुल की लंबी कहानी सुनाकर मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूं! जय हिंद!!
पंकज खन्ना
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